सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत दर्शा रही है आपणा घर प्रदर्शनी

 सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत दर्शा रही है आपणा घर प्रदर्शनी

- अंग्रेजो के समय के पुराने बाट बना आकर्षण का केन्द्र

चंडीगढ़, (KK)- हरियाणा के फरीदाबाद जिले में आयोजित किए जा रहे 37वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में विरासत द्वारा 'आपणा घर' में लगाई गई सांस्कृतिक प्रदर्शनी में हरियाणा का हस्तशिल्प आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां 'विरासत' प्रदर्शनी के माध्यम से 'आपणा घर' को विशेष रूप से सजाया गया है। 'विरासत' निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि विरासत प्रदर्शनी में हरियाणा के गांवों से जुड़ी हुई सभी प्रचीन वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है जो अब लुप्तप्राय हो चुकी हैं। विरासत हेरिटेज विलेज का प्रयास है कि अपनी आने वाली पीढिय़ों के लिए इन वस्तुओं को संजोकर रखा जा सके ताकि उन्हें भी अपनी संस्कृति पर गर्व हो सके।

        इस प्रदर्शनी में डायल को भी दर्शाया गया है। पुराने समय में इसके दोनों तरफ रस्सी बांधकर दो व्यक्ति तालाब से ऊंची भूमि पर इससे पानी खींचने का कार्य किया करते थे। इसी तरह कुंए से पानी खींचने के लिए डोल प्रयोग किया जाता था। यहां पर प्रदर्शित ओरणा किसानों द्वारा गेहूं तथा फसल की बुवाई के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। इसी तरह जेली एवं टांगली किसान द्वारा बिखरी हुई फसल को एकत्रित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। यहां प्रदर्शित लकड़ी, लोहे और पीतल की घंटियां, गाय, भैंसों, हाथी तथा रथ के लिए प्रयोग में लाई जाती रही हैं। प्राचीन समय में कुंए में जब कोई वस्तु गिर जाती थी, तब उसको कुंए से निकालने के लिए प्रयोग होने वाले कांटे एवं बिलाई को भी प्रदर्शित किया गया है।

        विरासत प्रदर्शनी में छापों (ब्लॉक) का प्रदर्शन भी किया गया है। यह ब्लॉक डिजाइन छपाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले लकड़ी से बने होते हैं। इनका प्रयोग कपड़ों की रंगाई के लिए किया जाता रहा है। प्रदर्शनी में अंग्रेजों के आने से पहले देहात में अनाज तथा तेल आदि की मपाई के लिए जिन मापकों का प्रयोग किया जाता था। इन मापकों का भी प्रदर्शन किया गया है। छटांक, पाव, सेर, दो सेर, धड़ी, मण के आकार के अनुसार अनाज को मापने के लिए प्रयोग किए जाते रहे हैं। प्रदर्शनी में गांवों में महिलाओं द्वारा लड़की को दान में दिए जाने वाली फुलझड़ी को भी दिखाया गया है। इसी तरह से बोहिया भी देहात में प्रयोग होने वाली महत्वपूर्ण वस्तु है। इसी प्रकार यहां प्रदर्शित खाट एवं पीढ़ा हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। पीढ़ा, खटोला, खाट, पिलंग, दैहला आदि घरों, बैठकों एवं चौपालों में प्रयोग किए जाते रहे हैं। इस प्रदर्शनी में सैकड़ों वर्ष पुराने बर्तन भी प्रदर्शित किए गए हैं।

 

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        सूरजकुंड मेला शिल्पकारों को अलग पहचान दिलाने का एक प्लेटफार्म बना हुआ है। देश - विदेश के प्रख्यात हुनरमंद शिल्पी अपनी कला से पर्यटकों का मन लुभा रहे हैं। देश व विश्व के अलग - अलग हिस्सों से आए शिल्पकार अपने एक से एक उत्पाद पर्यटकों के लिए लेकर आए हैं। इन्हीं में से एक है राजस्थान के जयपुर से आए शिल्पकार दंपत्ति भागचंद और सुमित्रा देवी। इनकी स्टॉल पर जैम स्टोन व इजिप्सन कला के सुंदर से सुंदर वस्तुएं उपलब्ध है। शिल्पकार भागचंद ने कनाडा के एक शिल्पकार से दस साल पहले इजिप्ट कला की बारीकियां जानी। इसके बाद नई कला इजिप्शन को जन्म देकर दुनिया के आधा दर्जन देशों तक पहचान दिलाने में कामयाब रहे। वे अपनी इस शिल्पकारी के लिए बेस्ट आर्टिजन, बेस्ट प्रोडक्ट और मास्टर अवॉर्ड भी प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने राजस्थान में पाए जाने वाले जैम स्टोन से बनाए उत्पादों को देश भर में नई पहचान दिलाई।

सूरजकुंड मेला में आए उड़ीसा के नेशनल अवार्डी शिल्पकार पंकज कुमार

- दुर्घटना से दिव्यांग हुए पंकज कुमार ने चांदी की तारकशी कला को दिलाई पहचान

- दो किलोग्राम चांदी से बनाई है भगवान की छतरी, अपनी कला के दम पर पा चुके हैं प्रधानमंत्री विश्वकर्मा गुरु अवार्ड

- उड़ीसा में हुए हॉकी वर्ल्ड कप में बनाई थी चांदी की ट्रॉफी

हरियाणा के फरीदाबाद जिले में आयोजित किए जा रहे 37वें सूरजकुंड अंतराष्ट्रीय शिल्प मेला में स्टॉल नंबर - 1066 उड़ीसा से आए शिल्पकार पंकज कुमार अपनी कला के माध्यम से ध्यान का केंद्र बने हुए हैं। कारण है इनके स्टॉल पर चांदी की नक्काशी करके बनाई गई विभिन्न वस्तुएं। उड़ीसा के शिल्पकार पंकज कुमार शाहू वर्ष 1995 में राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके हैं। नेशनल अवॉर्ड प्राप्त कर चुके पंकज कुमार एक दुर्घटना में दिव्यांग हो गए थे। इसके पश्चात उन्होंने दिव्यांगता को अपनी हिम्मत और मज़बूती बनाया।

        पंकज ने एक हाथ से ही वे फिलिगिरी सिल्वर आर्ट (चांदी की तारकशी) के जरिए अपने हुनर को निखारना आरंभ किया। उन्हें कलाश्री और प्रधानमंत्री से विश्वकर्मा गुरू अवॉर्ड जैसे सम्मानों से नवाज़ा गया। उन्होंने हुनर को नया आकार देकर चांदी की तारकसी कला को देश के कोने - कोने तक पहुँचाया और इस कला को एक नई पहचान दिलाई। पंकज कुमार शाहू को उड़ीसा हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट प्रमोशन काउंसिल का सदस्य बनाया गया है।

        शिल्पकार पंकज कुमार ने बताया कि वह चांदी के बिस्किट खरीदकर उसे पिघलाते हैं। फिर उसे मोल्ड करके डिजाइन तैयार करते हैं। उनके द्वारा बनाए गए ईयर रिंग, नेकलेस, पेंडेंट, सजावट की वस्तुएं, कृष्ण - अर्जुन रथ, नाव, झुमका, भगवान के मुकुट आदि उत्पाद उनके इस स्टॉल पर उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि चांदी तारकसी कला की सबसे अधिक डिमांड दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बैंगलूरू शहर में है। पंकज कुमार ने बताया कि वह पिछले तीस वर्षों से इस कला से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2018 में उड़ीसा में हुए हॉकी वल्र्ड कप में उनके द्वारा बनाई गई चांदी की ट्रॉफी सभी खिलाड़ियों को प्रदान की जा चुकी है।

        उनके द्वारा बनाई गई दो किलोग्राम चांदी की भगवान की छतरी अपनी नक्काशी से लोगों में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इसकी कीमत करीब तीन लाख रुपए है। एक दर्जन से अधिक अवॉर्ड प्राप्त करने वाले शिल्पकार पंकज कुमार शाहू उड़ीसा की 49 कलाओं को प्रमोट करने पर कार्य कर रहे हैं।

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