निर्णय लेने में अनिल विज का कोई मुकाबला नहीं - कृष्ण भारद्वाज
निर्णय लेने में अनिल विज का कोई मुकाबला नहीं - कृष्ण भारद्वाज
पत्थर भी टूट जाए परंतु अनिल विज जनहित में बिल्कुल भी नहीं टूटे - भारद्वाज
विज साहब जनहित और प्रदेशहित के मद्देनजर किसी भी ताकत के दवाब में नहीं आते - भारद्वाज
चण्डीगढ, (KK) - भारतीय जनता पार्टी में हरियाणा से वरिष्ठतम नेता पूर्व गृह मंत्री श्री अनिल विज निर्णय लेने में रतिभर संकोच नहीं करते हैं, बशर्ते मामला जनहित और प्रदेशहित का होना चाहिए। उनके सशक्त तीन- चार निर्णयों के उदाहरण उनकी सशक्तता साबित करने के लिए काफी होंगे। ऐसा कहना है कि उनके साथ रही विज के सचिव श्री कृष्ण भारद्वाज का।
भारद्वाज ने बताया कि वे उनके साथ लंबे समय तक सचिव के तौर पर तैनात रहे हैं और श्री विज की कार्यशैली से वे काफी प्रभावित रहे हैं।
श्री विज के साथ काम कर चुके भारद्धाज ने कई ऐसे मौके देखें जब श्री विज ने एक बेहतरीन शासक होने का उदाहरण जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया है और प्रदेश हित और जनहित को ध्यान में रखते हुए संकट और पेचीदा भरे मामलों में बेहतरीन निर्णय लिए हैं, जिनमें से कई निर्णयों का केन्द्र सरकार और अन्य प्रदेश की सरकारों ने बाद में अनुसरण भी किया।
भारद्वाज बताते हैं कि एक बार स्वास्थ्य विभाग की एमपीएचडब्ल्यू की ऐसोसिएशन श्री विज से मिलने आई और अपने काम गिनाकर अपना स्केल संषोधित कराने की मांग की। जैसा कि नाम से स्पष्ट था मल्टीपरपज हेल्थ वर्कर यानी अनेको काम करने वाला स्वास्थ्य कर्मचारी। नाम से ही मंत्री महोदय सहमत हो गए कि अनेको काम महकमे ने तुम्हे ही दे रखे है किन्तु वेतन कम है। मैं न्याय करूंगा। एमपीएचडब्ल्यू का मात्र 1900 रूपए का पे-स्केल था और उनकी 2800 के पे-स्केल की मांग थी किन्तु स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने एमपीएचडब्ल्यू को 4200 का पे-स्केल देकर एमपीएचडब्ल्यू को स्वास्थ्य विभाग में अनदेखी के स्थान पर रुतबा दिला दिया और कई लोग श्री विज को भोले बाबा भी कहने लगे।
ऐसे ही, भारद्वाज ने दूसरा एक दिलचस्प किस्सा स्मरण करते हुए बताया कि पंजाब में राज्यपाल का पद रिक्त था। हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी जी दोनों राज्यों हरियाणा व पंजाब के राज्यपाल थे। उन दिनों हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अमित अग्रवाल जी राज्यपाल के सचिव थे। एक समय श्री अग्रवाल जी मंत्री महोदय के पास बैठे थे तो सचिव श्री अग्रवाल ने े मंत्री जी को बताया कि जनाब चण्डीगढ हमारी राजधानी भी है किन्तु कई मामलों में लगता है कि चण्डीगढ केवन पंजाब है जैसे कि चण्डीगढ में सिर्फ बेरका दूध के बूथ है, वीटा के क्यों नहीं। इस पर, मंत्री जी गम्भीर हुए और पूछा ये कैसे होगा। सचिव ने कहा कि आप इस बारे में राज्यपाल को पत्र लिखकर दो, बाकी काम ये कराएंगें और उपयुक्त अवसर हैं क्योंकि उस समय हरियाणा के राज्यपाल पंजाब के राज्यपाल भी थे और चण्डीगढ के प्रशासक भी थे। एक ही दिन में सारी कार्यवाही हो गई और भेदभाव व वर्चस्व भी समाप्त। आज चण्डीगढ में समान बंटवारे से बेरका व वीटा के बूथ हैं, ये है अनिज विज के काम करने का जज्बा।
श्री भारद्वाज के अनुसार उन्होंने एक ओर किस्सा स्मरण करते हुए सुनाया और बताया कि एक बार अस्पतालों के अंदर दवाइयों की दुकानें खुलवाने पर ज्यादा दबाव बढ रहा था और मंत्री जी का स्टैंड था कि यदि आज हम अस्पतालों में दवाइयों की दुकानें खोलते हैं तो सरकार की दवाईयों सभी को फ्री देने के सिद्धांत की धज्जियां उड़ जाएगी। क्योंकि फ्री दवाईयां देना हमारी सरकार की प्राथमिकता है। किन्तु अस्पतालों के प्रांगण में दुकानें बनी तो डॉक्टर मरीजों को बाहर की दवाइयां लिखेंगें और गरीब जनता को नुकसान होगा तथा सरकार और मेरे सिद्धांत की धज्जियां उड जाएगी। लेकिन कहते हैं कि श्री विज तो विज है और वे जरा भी टस से मस नहीं हुए, उस समय जोर इतना लगा कि पत्थर भी टूट जाए परंतु अनिल विज जनहित में बिल्कुल भी नहीं टूटे और प्राइवेट दवाई की दुकानों को उन्होंने अस्पतालों में नहीं खुलने दिया।
ऐसा ही एक और मजेदार लेकिन बहुत ही समझदारी का निर्णय उन्होंने लिया जिसे बाद में भारत सरकार ने भी इस निर्णय की प्रशंसा की। आयुष्मान भारत स्कीम के तहत निशुल्क इलाज की स्कीम पर मंथन चल रहा था। ज्यादातर अधिकारी इंश्योरेंस मॉडल की वकालत कर रहे थे। श्री विज जी का तर्क था कि यदि ऐसा किया तो हमारा सारा स्वास्थ्य विभाग का ढांचा खत्म हो जाएगा। हम प्राइवेट सेक्टर के गुलाम बन जांएगे। परंतु उन्होंने शिमला मीटिंग में बडे तार्किक अन्दाज में अपनी बात रखी जिसको सबने अपनाया और आज सच्चाई सबके सामने है। स्वास्थ्य विभाग का सम्मान बढा और संसाधन समाप्त होने से भी बच गए और स्कीम भी ऐसी चली कि पूरे भारत में भाजपा की इज्जत बढी।
एक बार श्री अनिल विज जी पुलिस अधिकारियों की पुलिस मेडल को लेकर मीटिंग ले रहे थे। मीटिंग में पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार पुलिस मेडल देती है। उन्होंने पुलिस अधिकारियों से पूछा कि क्या स्टेट का भी कोई अवार्ड है कि राज्य सरकार द्वारा पुलिस को कोई अवार्ड नहीं दिया जाता। बस उसी समय मंत्री जी ने भारद्वाज को आदेश दिया कि तीन अवार्ड शुरू करने के लिए ड्राफ्ट तैयार करो। भारद्वाज ने ब्रेवरी अवार्ड, ऑफिस एफिशिएंसी अवार्ड और इन्वेस्टिगेशन अवार्ड देने के लिए ड्राफ्ट तैयार किया और हरियाणा पुलिस में पहली बार स्टेट अवार्ड देने की शुरुआत हुई।
उन्होंने पुलिस को और अधिक सम्मान दिलाने के लिए कलर दिलाने का भी अच्छा प्रयास किया और वह सफल रहे और हरियाणा पुलिस को पहली बार कलर दिलाया। इससे पहले कलर देश भर के 12 राज्यों की पुलिस के पास था और हरियाणा पुलिस भी अनिल विज के प्रयासों से इसमें शामिल हुई। बताया जाता है की कलर को लेने के लिए पुलिस की 25 साल की अवधि होनी चाहिए लेकिन हरियाणा पुलिस को काफी समय हो चुका था और किसी ने हरियाणा पुलिस को कलर दिलाने के लिए ध्यान नहीं दिया जिसे सिरे चढ़ाने का काम तत्कालीन गृह मंत्री अनिल विज ने किया।
भारद्वाज बताते हैं कि श्री विज के अनेकों ऐसे निर्णय है जिनमें उन्होंने जनहित को ऊपर रखा और वे किसी भी ताकत के दबाव में नहीं आए। तभी लोग श्री विज के बारे में कहते हैं किः-
‘‘चिड़िया नाल मैं बाज लड़ावा’’
‘‘गिदडा नूं मैं शेर बनावा’’
‘‘सवा लख नाल मैं एक लडावां’’
‘‘तां अनिल विज (श्री गोविंद सिंह) नाम कहावां’’।।