भोजन में मोटे अनाज को शामिल कर ही रह सकते है स्वास्थ्: राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय

नई दिल्ली, (KK): हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि मोटे अनाज का प्रयोग छोड़ देने के कारण देश में कई तरह की बीमारियां बढ़ी है, खासकर शुगर, ब्लड प्रेशर दिल, किडनी, कैंसर जैसी रोगों से ग्रस्त मरीजों की संख्या में बड़े स्तर पर इजाफा हुआ है। राज्यपाल ने कहा कि जब तक भोजन में अनाज नहीं बदलेंगे तो देश का स्वास्थ्य नहीं बदल सकता है, इसलिए मोटे अनाज का प्रयोग हमें बड़े स्तर पर करना होगा।

राज्यपाल नई दिल्ली स्थित राजघाट के सेमिनार हाल में तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार "मोटे अनाज का उपयोग स्वस्थ मानव जीवन व सुरक्षित पर्यावरण' को संबोधित कर रहे थे। इस राष्ट्रीय सेमिनार में पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, पदमश्री डा. खादर वली, पद्मश्री राम बहादुर राय, आर.के. सिन्हा, विजय गोयल, डा. सच्चिदानंद जोशी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय ने भी संबोधित किया। इस सेमिनार में अनाज के बदलाव से स्वास्थ्य में आई गिरावट पर चर्चा की गई और मोटे अनाज का प्रयोग बढ़ाने पर बल दिया गया। राज्यपाल श्री दत्तात्रेय ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने मोटे अनाज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है और संयुक्त राष्ट्र ने भी उनके आग्रह पर मोटे अनाज को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के रूप में घोषित किया है। मोटे अनाज को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के इस अभियान में केंद्र सरकार की ओर से इसी वर्ष इसे प्रोत्साहित करने का फैसला किया गया है और केंद्र ने एक नई योजना श्री धन्य की शुरुआत की है।

श्री दत्तात्रेय ने कहा कि पहले सभी के भोजन में मोटे अनाज को शामिल किया जाता था। मोटे और छोटे अनाज ही हमारे भारत का पारंपरिक पौष्टिक आहार रहे हैं। हमारे पूर्वज इसी आहार को खाकर तथा हमारे देशवासी सक्रिय, स्वस्थ्य एवं दीर्घायु जीवन व्यतीत करते रहे हैं। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बम और गोला- बारूद को बनाने के लिए जो रासायनिक सामग्री उन्नत देशों ने तैयार की थी और जो बच गई उसी के उपयोग से उन्होंने धान, गेहूं और गन्ना का उत्पादन बढ़ाकर भारत जैसे विकासशील देशों में गलत ढंग से प्रचारित किया।

उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार मोटे अनाज विशेष कर बाजरा की पैदावार बढ़ाने पर जोर दे रही है और इस दिशा में किसान को समृद्ध करने के लिए बाजरा को भाव भावांतर योजना में शामिल किया गया है। भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमओएफपीआई) ने 2022-23 से 2026-27 के दौरान ₹800 करोड़ रूपए के परिव्यय के साथ कार्यान्वयन के लिए बाजरा आधारित उत्पादों (पीएलआईएसएमबीपी) को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दे दी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शुरू की गई प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम उपचारिकीकरण (पीएमएफएमई) योजना वर्तमान में पैतीस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जा रही है।

सरकार किसानों/एफपीओ/उद्यमियों को बाजरा में प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने के लिए 2 करोड़ रूपए तक के ऋण पर ब्याज छूट का लाभ उठाने को आमंत्रित करने के लिए कृषि-इंफ्रास्ट्रक्चर फंड योजना को भी लोकप्रिय बना रही है। किसानों को बाजरा की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत ज्वार, बाजरा और रागी की कीमतों (MSP) की घोषणा की गई है।

बोले , बचपन में खाते थे ज्वार की रोटी, मां की शुगर भी हुई ठीक

राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि 1954 में जब वे बाल्य अवस्था में थे तो उनका परिवार गरीब रहा । माँ हर रोज ज्वार की रोटी खिलाती थी, हम सभी एक स्वस्थ जीवन यापन कर रहे थे। बड़े होने पर शहर जा कर रहने लगे। तब तक मामा जी अफसर बन गये थे। इस से घर में चावल खाने की शुरूआत हुई। चावल लगातार खाने से माँ को शुगर की बीमारी हो गई। मैने देखा कि ज्वार की रोटी छोड़ने से माँ को शुगर की बीमारी हुई। हम सभी ने फिर से ज्वार की रोटी को अपने भोजन में इस्तेमाल करना शुरू किया। ज्वार की रोटी से माँ फिर से स्वस्थ हो गई। मोटे अनाज की यह अहमियत है जो हमे समझने पड़ेगी। पहले ज्वार की रोटी को गरीब और मजदूर वर्ग का भोजन कहा जाता था। लेकिन आज ये श्री धान्य भारत में ही नहीं विदेशों में भी अपनाया जा रहा है।

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